किशोरा अवस्था के दिनों में मुख्यतः सोच बागी ख्यालो से भरी रहती है और शायद समाज ने ऐसे ही बागियों को काबू में रखने के लिए ऐसा माहौल बना रखा है, जिस में लगता है की अगर आपने शराब पीना शुरू कर दिया तो बस आप असली बागी बनने की राह पर निकल पड़े।
मुझे पता नहीं हिंदुस्तान की आजादी से पहले हिन्दू मुस्लिम फसाद होते भी थे क्या और ना ही ये कभी जानने की कोशिश की। मगर बटवारे के वक़्त और उसके बाद के हिन्दू मुस्लिम फसादों की कई कहानियां नाना नानी से सुनी थी और होश आते आते अखबारों और समाचारों के ज़रिये भी काफी कुछ देख लिया था। ऐसे में कोई ऐसी किताब जिस में मजहब से बड़ी मदिरा और मंदिर-मस्जिद से बड़ा मदिरालय का चित्रण किया गया हो तो बहुत ही क्रन्तिकारी सोच लगती है। मधुशाला ऐसी ही एक कविताओं की किताब थी जो की हरिवंश राय बच्चन ने लिखी थी।
असली वाला बागी बनने के लिए कभी कभी शराब तो हमने पीना शुरू कर ही दिया था और उस वक़्त ऐसी किताब हाथ लग गयी तो बस मैं तो असली वाला बागी बनने की राह पे निकल ही लिया था। खैर शराब पीने से मैं असली वाला बागी बन पाया के नहीं ये तो पता नहीं पर नींद अच्छी आ जाती थी।
कल बहुत सालों बाद अचानक से सुबह ध्यान आया की आज तो हरिवंश राय बच्चन जी का जन्मदिन है। और हमने भी पुराने दिनों को याद करते हुए यह सोचा की शाम को उनका जन्मदिन शराब के साथ मनना तो एक दम आवश्यक है। वैसे एक बार मेरे नानाजी ने मुझे कहा था की हरिवंश राय बच्चन ने कभी शराब नहीं पी मगर ऐसी बातें भला कौन तो मानता है और कौन याद रखता है। खैर शाम हो गयी और हम मधुशाला जाने के लिए तैयार होने लगे ही थे के इतने में हमारे दूरभाष यंत्र की घन्टी घनघना उठी। मैंने दूरभाष यंत्र उठाया तो उसमें से हमारे माट साब की आवाज़ आई, की आज शाम को कुछ कवियों और लेखकों की गोष्ठी हे जहाँ सब अपनी अपनी रचनाएँ पढ़ेंगे और हाँ वक़्त से पहुँच जाना। मैंने ऊपर आसमान की और देखा और सोचा की क्या नानाजी ने सच कहा था की हरिवंश राय बच्चन ने कभी शराब नहीं पी? क्या हरिवंश जी मुझे ऊपर से देख रहे हैं और क्या इस के पीछे उन्ही का हाथ है? खैर हम वक़्त पर पहुँच गए और जैसे जैसे चाँद आसमान मैं चढ़ा मुझे इस बात का एहसास हुआ की इस से बढ़िया कोई और तरीका नहीं हो सकता था हरिवंश जी का जन्मदिन मानाने का।
मैं तहे दिल से धन्यवाद देना चाहता हूँ अमित कल्ला जी का जिन्होंने इस गोष्ठी का आयोजन करवाया और हमारे माट साब का जिन्होंने मुझे इस गोष्ठी मे आमंत्रित किया।
लगे रहो मनु भाई
ReplyDeleteधन्यवाद नानाजी . . . . :)
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