मैं पिछले कुछ दिनों
से कुछ कामों
में कुछ नाकामों
में व्यस्त था,
इस लिए रात्रि
छायाचित्र टहल के
लिए भी समय
नहीं निकाल पाया।
किन्तु परंतु किन्तु कल
रात वक़्त निकल
ही आया और
मैं भी अपनी
प्रतिबिम्बि लेने की
पेटी ले के
पुराने शहर की
तरफ निकल पड़ा।
रात थोड़ी सर्द
तो पहले से
थी और मैंने
सोचा जब तक
मैं शहर पहुंचूंगा
सर्दी थोड़ी और
सर चढ़ जाएगी।
ऐसे में खुले
आसमां के निचे
सोने वाले दिन
भर के थके
हारे लोग अलाव
जला कर सोने
की तइयारी कर
रहे होंगे। इस
सब को अपनी
प्रतिबिम्ब लेने की
पेटी में कैद
करने में अलग
ही आनंद आएगा।
मगर जब मैं
शहर पहुंचा तो
मेरा दिल ही
टूट गया।
पहला: शायद खुले
आसमां के निचे
सोने वालों के
लिए इतनी ठंड
नहीं आई थी
की उनको अलाव
की जरुरत पड़ती।
दूसरा: हमारे जयपुर शहर
में पिछले कुछ
दिनों मे विकास
के नाम पे
सरकार ने पथ
पे जलने वाले
बेडौल से मोटे
प्रकाशपुंजों को, जो
की आधी अधूरी
सी पीली कुछ
नारंगी सी रौशनी
देते थे, जिन्हें
सर्दी की धुंद
भरी रातों में
देख कर कुछ
गर्मी का अहसास
भी होता था।
को नयी पतली
सुडोल प्रकाश उत्सर्जक
डायोड प्रकाशपुंजियों से
बदल दिया है।
जो की बिजली
भी बचाती हे
और रोशनी भी
जयादा देती है।
मगर इन सफ़ेद
चमकदार प्रकाशपुंजियों ने मुझ
जैसे छायाकार की
जिंदगी से सर्दी
की रातों के
वो गर्म पीले
रंग छिन लिए
हें जिन्हें मैं
मेरी प्रतिबिम्ब लेने
की पेटी में
कैद करने के
लिए रातों को
भटकता रहता था।
this made a lovely read, thanks for sharing buddy :-)
ReplyDeleteThank you. . . :)
DeleteThe only constant thing is constant - change . nicely presented :)
ReplyDeleteThank you. . . :)
DeleteYOU HAVE CHOSEN EITHER A WRONG TIME OR A WRONG PLACE
ReplyDeleteजयपुर में अलाव से लोग ठंड से निजात पाते नजर आए।
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