में सोचता हूँ की कोई भी बारिश मुकम्मल तब तलक नहीं हो सकती जब तक उसे महसूस न किया जाए। एक बारिश को मुकम्मल उसे महसूस करने वाला ही बनाता है। अगर किसी बारिश को कोई महसूस करने वाला नहीं तो वो बस पानी की कुछ बूंदो की एक मुख़्तसर सी कहानी बन के खो जाती है। आज की बारिश शायद एक ऐसी ही मुख़्तसर सी कहानी थी, जिसका होना बस होने के लिए था।
वरना आप ही सोचिये क्या कभी ऐसा हो सकता हे की बारिश हो और कोई एहसास पैदा न हो? एहसास होंगे तो उसे महसूस करने वाले भी होंगे और बारिश खुद ब खुद मुकम्मल हो जाएगी। एक ज़माना था जब बारिशें होती थी और एहसास खुद ब खुद पैदा हो जाते थे। कहीं ऐसा तो नहीं आज कल की बारिशों में एहसास पैदा करने वाला जज़्बा ही नहीं रहा? क्या ये भी हमारी तरह आधुनिकता की दौड़ में अपने होने के असल कारण को ही भूल गयी?
हाँ यही कारण सही जान पड़ता है, शायद आज कल की बारिशें भी आधुनिक हो गयीं।
Waqt ke sath sab kuch change ho jata hai even felling also bhai
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